रविवार, 7 जून 2020

जमाने का दस्तूर - ग़ज़ल







जमाने  का  मतलबी सा दस्तूर  है 
इश्क करने वाले कहां  बेकसूर  है 


कोई  रोता  पैसे शोहरत  के लिए 
किसी को आशिकी का  फ़ितूर है



मुश्किल की  घड़ी  चाहे कोई  हो 
रोता  हर  बार  गरीब  मजदूर  है 


रोटी  को  भी  कई  तरस  गए 
कई  लालच के आगे मजबूर है



कहीं  गुमनाम  है  खुद   से  ही 
कई  प्यार  में आशिक  मशहूर है


आज  हो  गए  सब  लोग  अकेले 
खता  सब  की   कोई  जरूर  है 


जीवन  भी  मिला  खुदा  से  उधार  है
 कुदरत  के  आगे  इंसान  हुआ चूर है 



किसी  और के  जैसे  बनना  चाहते
'प्रीती' अपना  किरदार किसे  मंजूर है



JMANE KA DISTUAR




Jmane  Ka  Matlabi  Sa Distuar  Hai
Isahq  Krne  Wale  Khan Beksaur Hai


Koi  Rota  Paise  Shurat K Liye 
Kisi  Ko  Aashqi  Ka  Fitur  Hai 


Mushkil  Ki  Gdhi  Chaye  Jo Bhi  Ho 
Rota  Hrr  Bar Greab  Majdur  Hai 


Roti  Ko  Bhi  Kyi  Taras  Gye 
Kyi  Lalach  K Aagye  Majbur Hai 


Khii  Gumnn  Hai Khud  Se  Hi 
Kyi  Pyar  Mai  Aashiq  Mashuar  Hai 


Aaj  Ho Gye Sab  Log Akele  
Khta  Sab  Ki  koi  Jarur Hai


Jevan  Bhi  Mila  Khuda  Se Udhar 
Kudrat  K Aagye  Insan  Hua chur Hai


Kisi  Or  K Jaise  Bnna Chahte 
'Preeti' Apna Kirdar Kise Manjur  Hai



#  God # Famous #Love 

1 टिप्पणी:

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