रविवार, 17 मई 2020

बेघर (कविता) प्रीती





घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सड़कों पर लाचार हुए बैठें है 


बड़ी बड़ी बातें करने वाले वो नेता 
हमारी भूख के शिकार में बैठें है 
घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सड़कों पर लाचार हुए बैठें है 


ना खाने को अन्न ना पीने को पानी 
हम दुखों से भरे हुए संसार में बैठे है 
घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सड़कों पर लाचार हुए बैठे है


जहर तो कभी ट्रेन की लपेट में आए 
ये राजनीति खेलने वाले बहार हुए बैठे है 
घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सडकों पर लाचार हुए बैठे है 


वादा कर कर आए थे खुशियाँ लाएंगे 
पर आज चिहरे पे दुख हजार ले बैठे है
घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सड़कों पर लाचार हुए बैठे है  


मीलों मील चलने के लिए विवश हुए 
कंधों पर आज परिवार  लिए बैठे है 
घर से बेघर हुए थे रोजगार के लिए 
आज सड़कों पर लाचार हुए बैठे है

#helppoorpeople #corona

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